By Prakriti Shaktawat

काली धुंध से कहा मैंने कि पीछा छोड़ो,
क्योंकि अब घर अपने जाना है |
मुस्कुराकर वह बोली कि नकाबों कि आतिशबाज़ियों मे,
घर वह मेरा अब रहा नहीं |
घर का क्या अब पता अलग था?
उस अँधेरी गली के साए से मैंने पूछा |
इतराकर वह बोली कि हवेलियों कि चाह मे चलते ही,
घर वह मेरा अब वहाँ रहा नहीं |