कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी – Delhi Poetry Slam

कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी

By Prabhnoor Kaur

हाँ, बात तो सही है कि मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
पर प्यार का दूसरा नाम ही तो दोस्ती है...
जब पहली बार मिली थी तो सोचा नहीं था कि इस कदर प्यार हो जाएगा उससे,
पर कहते हैं ना कि दिल पर तो खुद का ही ज़ोर नहीं चलता,
तो बस हो गया प्यार उस नमूने से...
और शायद उसे मुझसे ज़्यादा!

धीरे-धीरे उस दोस्त को अपना प्यार मान बैठी,
जिसने हर वक्त मेरा साथ दिया,
मुझे संभाला और मेरी परवाह की...

जब भी मैं हँसती हूँ, उसका चेहरा खिल सा जाता है,
जब भी मुझे रोना आता है, तो वो भी मेरे साथ बैठ जाता है,
कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
पर पता नहीं क्यों प्यार से भी ज़्यादा प्यार जताता है...

जब भी मैं कमज़ोर पड़ती हूँ, मेरा हाथ थाम लेता है,
जब भी गिरने वाली होती हूँ, अपनी बाहों में उठा लेता है,
कहता है दोस्ती में ये सब चलता रहता है,
फिर क्यों उसकी आँखों में वो अपनापन सा दिखता है...
कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
ना जाने फिर क्यों मुझे अपने दिल में यूँ जगह देता है...

पूरा दिन मेरी बकवास सुनता है,
एक लफ़्ज़ ना कहकर भी सिर्फ़ मुस्कुराता रहता है,
कहता है मुझे कि पकाती बहुत हूँ मैं,
पर फिर भी मुझे अपने से अलग नहीं देखना चाहता है...
कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
पर जब भी जाने की बात करूँ,
क्यों डाँटकर अपने पास सुला लिया करता है...

कहता है मुझे तुझसे फ़र्क़ नहीं पड़ता,
कहता है तुझे जिससे बात करनी है कर सकती है,
पर जब मुझे किसी और से बात करता देखता है,
जल-भुनकर राख हो जाता है...
कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
पर दूसरों को मेरे करीब देख कर मेरा हाथ पकड़ लिया करता है...

दिनभर लड़ाई करता रहता है,
पर रात को मेरे गले लगे बिना सोता भी नहीं है,
ऐसा प्यार तो फिल्मों में भी नहीं होता जितना अपने चेहरे से बयां कर जाता है...
कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
पर फिर भी अपने सारे हक़ मुझ पर रखकर मुझे दिन-रात सताता है...

मुझे कहता है मैं प्यार की भूखी हूँ,
पर पूरा दिन तो जनाब को मुझसे लाड चाहिए होता है,
कुछ पल के लिए औरों से बात क्या कर लूँ,
इनका मुँह एक लाल टमाटर जैसा सूज जाता है...
कहता फिरता है मैं दोस्त हूँ उसकी...
पर अगर किसी और को गले लगा लूँ,
तो बस पूरा दिन उसके आगे-पीछे घूमना पड़ता है...
हाथ झटक कर खुद को मुझसे दूर करता है,
मगर अगले ही पल पप्पियों की डिमांड भी...
कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
पर हर समय मुझे अपने सीने से लगाए रखना चाहता है...

हर लड़की की तारीफ करता है,
कि मानो हर एक को जैसे बचपन से जानता हो,
फिर मेरी तरफ़ मुड़-मुड़कर बच्चों जैसे सहम सा जाता है,
आकर कहता है माफ़ी चाहिए,
पर अंत में खुद ही मुझसे रूठ जाता है...
कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
लेकिन ना जाने क्यों मुझसे उसे इतना फ़र्क़ पड़ता है...

मुझे दूसरों के जाल में फँसता देख,
खून उसका खौल जाता है,
कहता नहीं है, पर अपने इशारों से अपना दुख छुपाता है,
कहता है फिर मेरे पास मत आना,
मुझे खुद से दूर करके अपने और करीब ले आता है...
दुखी भले ही मैं भी हूँ,
मगर मनाने तो मुझे ही जाना पड़ता है...
कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
पर क्यों मुझे खोने के डर से ही कमज़ोर पड़ जाता है...

यूँ तो कमियां मुझमें भी हज़ार हैं,
पर अपने दिल के आगे हार वो भी जाता है,
शरमाता भी है तो कभी रूठ भी जाता है,
खुद तो दोस्त कहलाता है मगर मेरे कहने पर ज़रूर चिढ़ जाता है...
इतना तो भरोसा मुझे भी है उस पर,
कि धड़कन तो उसकी मुझसे ही चलती है,
वरना कबका कह जाता कि तुझसे प्यार नहीं करता...
कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
मगर अपने दिल पर काबू रखकर,
मुझे सुरक्षित महसूस करवाता है...

एक छोटे बच्चे की तरह संभाल कर रखता है,
अपने ऊपर हर एक ज़ुल्म करने देता है,
कहता है पूरी दुनिया से बचाकर रखूँगा,
लेकिन मुझे चोट लगने पर खुद टूट जाता है,
कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
पर हर खुशी मेरे क़दमों में लाकर रखता है...

कोई मुझे कुछ भी कहे,
बर्दाश्त नहीं होता उससे,
पर फिर भी मेरी लड़ाई मुझे खुद लड़ने का हौसला देता रहता है,
कंधे पर हाथ रखकर मेरा साथ ज़रूर देता है...

कहता रहता है दुनिया से दोस्त हूँ मैं उसकी,
पर क्यों इस तरह आँखों ही आँखों में इज़हार किया करता है...
कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
मगर क्यों मेरे अपनों से भी बढ़कर मुझे प्यार थमाया करता है...

गुस्सा तो हमेशा नाक पर रहता है उसका,
मगर मेरे छूने से पिघल सा जाता है,
मुझे कहीं लग ना जाए इसलिए अपना सारा दर्द भूल जाता है,
कहने को तो मैं सिर्फ दोस्त हूँ उसकी,
लेकिन ये तो सच है कि अपनी जान कहकर बुलाता है...

यूँ तो मेरे हर सवाल का जवाब है उसके पास,
सिवाय एक के...
हाँ हाँ वही, जब भी पूछूँ कि बोल, मुझसे प्यार करता है?
तो उसकी ऐसी शक्ल बन जाती है कि पूछो मत...
ज़ुबान कुछ और कहती है और आँखें कुछ और,
फिर भी अपनी बात टाल देता है,
ना जाने इतना क्यों डरता है,
कि मानो मैं उसे कुछ कह ना दूँ,
या यूँ कह लो कि मुझे ही खोने का डर है उसे...
इतना सोचता है कि मेरे लिए वो सही है या नहीं,
मेरी बातों को अनसुना कर खुद ही सारी बातें अपने आप से सोचकर बैठ जाता है...

दुनिया की फ़िक्र नहीं उसे, मेरी फ़िक्र ज़्यादा है,
पर वो नासमझ ये नहीं जानता कि मेरे लिए वही मेरी पूरी दुनिया है...
मैं चिल्ला-चिल्ला कर सबको बताती हूँ,
कि हाँ, प्यार है मुझे उससे,
पर वो मुझे सिर्फ़ अपना दोस्त बताता है...

ना जाने कब एहसास होगा,
ना जाने कब इकरार होगा...
कि उसका दिल भी मुझे ही चाहता है...
कब आएगा वो दिन,
जब वो भी इस दुनिया को बताएगा,
कि हाँ, मुझे भी है प्यार उससे,
नहीं है वो सिर्फ़ दोस्त मेरी,
अब से तो हमारा "मियाँ-बीवी" का नाता है...


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