By Poorvi Chaturvedi
शक्ति हूँ, अनासक्ति भी।
मोह हूँ, निर्मोही भी।
बैर हूँ और भय भी,
स्त्री हूँ, कभी कुछ कोई कहे वो नहीं।
गोद मेरी धैर्य, कभी वही गोद खाई है।
निगलती भी शव यही, कराह कर जन्म देती कितनी माएँ हैं।
कलाई की चूड़ी हूँ, कसी जाती भी कभी कभी।
स्त्री हूँ, कभी कुछ कोई कहे वो नहीं।
मुक्त हूँ, बाँध भी।
गौरी हूँ तो काल भी।
उषा सी कृपा हूँ और द्रौपदी का कोप भी।
लहु से मैं और मुझसे लहु, इस मास भी।
स्त्री हूँ, न योजना या कोई अवधारणा।
स्त्री हूँ, लकीरों सी खिंची और आत्मा सी विमुक्त।
उपन्यास हूँ तो कभी एक लीला,
समझो, कभी कुछ कोई कहे मैं वो नहीं।
- पूर्वी