By Poonam Sinha

हरदम हर दिन बढ़ती जाए
क्यूँ एक आस सी जगती जाए
मन में आख़िर ऐसा क्या है ?
क्यूँ ये इच्छा उगती जाए ?
एक ख़त्म तो दूसरी उपजे
कभी दबे ,कभी शीर्ष पे पहुँचे
किसी को देख चमक जाए ये
मुझे भी चाहिए कहे जाए ये ।
कहते हैं ये अनंत भाव है
इच्छा तो एक लोभ मात्र है
पर क्या ये कहना उचित नहीं है ?
इच्छा से तो मनुष्य मात्र है ।
भूख की इच्छा ,भवन की इच्छा
काम ,वस्त्र तन धन की इच्छा
शादी करके ,ढेरों इच्छा
पुत्र कभी -पुत्री की इच्छा ।
फिर भी ये पर्याप्त नहीं है
कितनी इच्छा दबी हुई हैं
मानव मन में मरी पढ़ी हैं
क्यूँ अनदेखी करें हम उनकी
जबकि हमने ख़ुद ही रचीं हैं ।
इच्छा ही तो बल है देती
आगे बढ़ने की चाहत देती
इच्छाओं से प्रगति संभव
देश धर्म की उन्नति संभव ।
मन में इच्छा अवश्य जगाओ
पूरा करने बढ़ते जाओ
तभी मिलेगी मन को मुक्ति
जब जागेगी इच्छा शक्ति ।
इतना फिर भी कहना सुनना
जीवन को तुम हर पल जीना
इच्छा मन में खूब जगाना
पूरा करने बढ़ते जाना ।
पर ना कभी इसके वश होना
इसे पकड़ मुट्ठी में रखना
समय- समय पर मुट्ठी खोल
इसको उड़ने की स्वीकृति देना ।