इच्छाएँ – Delhi Poetry Slam

इच्छाएँ

By Poonam Sinha

हरदम हर दिन बढ़ती जाए 
क्यूँ एक आस सी जगती जाए 
मन में आख़िर ऐसा क्या है ?
क्यूँ ये इच्छा उगती जाए ?

एक ख़त्म तो दूसरी उपजे 
कभी दबे ,कभी शीर्ष पे पहुँचे 
किसी को देख चमक जाए ये 
मुझे भी चाहिए कहे जाए ये ।

कहते हैं ये अनंत भाव है 
इच्छा तो एक लोभ मात्र है 
पर क्या ये कहना उचित नहीं है ?
इच्छा से तो मनुष्य मात्र है ।

भूख की इच्छा ,भवन की इच्छा 
काम ,वस्त्र तन धन की इच्छा 
शादी करके ,ढेरों इच्छा 
पुत्र कभी -पुत्री की इच्छा ।

फिर भी ये पर्याप्त नहीं है 
कितनी इच्छा दबी हुई हैं 
मानव मन में मरी पढ़ी हैं 
क्यूँ अनदेखी करें हम उनकी 
जबकि हमने ख़ुद ही रचीं हैं ।

इच्छा ही तो बल है देती 
आगे बढ़ने की चाहत देती 
इच्छाओं से प्रगति संभव 
देश धर्म की उन्नति संभव ।

मन में इच्छा अवश्य जगाओ 
पूरा करने बढ़ते जाओ 
तभी मिलेगी मन को मुक्ति 
जब जागेगी इच्छा शक्ति ।

इतना फिर भी कहना सुनना 
जीवन को तुम हर पल जीना 
इच्छा मन में खूब जगाना 
पूरा करने बढ़ते जाना ।

पर ना कभी इसके वश होना 
इसे पकड़ मुट्ठी में रखना 
समय- समय पर मुट्ठी खोल 
इसको उड़ने की स्वीकृति देना ।


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