By Pooja Wankar
माटी से जन्मा इंसान, फिर माटी में मिल जाता है,
त्याग देह को आतम फिर, एक नया देह चुन लेता है।
कहती है दुनियां बेशक़, ख़ाली हाथ आए थे ख़ाली हाथ जाओगे,
मगर कितना तनहा वो जाता है, किसने देखा जाकर उस पार
कितने क्यों, कितने क्या, कितने आंसू, कितने ग़ुबार,
कितने पछतावे, कितने राज़ सब साथ उसीके जाता है ।
इस पार खड़े हम क्या जाने वो क्या क्या लेकर जाता है।
कागज़, दौलत, घर, इंसान, शोहरत, यादें, नाम और काम
कितने क्यों, कैसे और कब सब छोड़ यहीं तो जाता है,
पर ले जाता इन सबके पूर्ण विराम, दुनियां को देकर अल्प विराम,
अल्प विराम से आगे फिर, लेकर पाछे कर्मों का भार,
परिचित सी उस सृष्टि में फिर से परिचय देता है, एक नया जन्म वो लेता है,
नए रूप में होकर साकार , पुनर्जन्म वो लेता है।
माटी में सिमटा इंसान फिर माटी में आ जाता है।