By Pooja Soni
मेरी ज़िंदगी
मेरी ज़िंदगी भी बड़ी अजीब है,
कभी भागती सी थी तो कभी चलती सी,
कभी रुकती सी तो कभी रेंगती सी,
अब तो किसी विलुप्त होती नदी सी लगती है मेरी ज़िंदगी,
जो अपने सागर से ना मिल पाई...
कैसी मेरी ज़िंदगी, ऐसी मेरी ज़िंदगी।
कभी सहेली सी थी, अब पहेली सी मेरी ज़िंदगी,
कितनी अकेली सी मेरी ज़िंदगी।
कभी लगता है अपने कंधों पर ढो रही हूं
तो बोझ सी मेरी ज़िंदगी,
कभी लाश सी, तो कभी प्यास सी,
कभी रेगिस्तान में पानी की आस सी,
कभी बुझे हुए दिये जैसी निराशा सी।
कभी महकते फूलों सी,
तो कभी पतझड़ में सूखी डाली सी,
कैसी मेरी ज़िंदगी, ऐसी मेरी ज़िंदगी।
कभी सूनी, तो कभी सपनों से भरी आंखों सी,
कभी आंखों में बसे सपनों सी,
कभी आंसुओं सी मेरी ज़िंदगी।
कभी अजीब सवाल सी, कैसी मेरी ज़िंदगी,
जो कभी मेरी ना सुनती, ऐसी मेरी ज़िंदगी।
Beautiful
Very deep and meaningful 👍