By Pooja Duwesh
कि पेट में दर्द है बस इतना सबको कहती है
दर्द से छटपटा रही है मगर फिर भी चुप रहती है
ये उन चंद दिनों का किस्सा है जो हर महीने सहती है
पर क्यूं कुछ नासमझ समाज इसे बीमारी समझती है
बूंद बूंद जब बहती है, कमज़ोरी भी संग चलती है
कभी कभी तो आंखों से भी बूंदें बहती हैं
वक्त बेवक्त अचानक से नींद खुलती है
रजाई हटाने पर लाल रंग को साफ़ करती है
बहुत छोटी उम्र में इसकी शुरुआत होती है
लगभग आधी उम्र तक ये दर्द सहती है
फिर भी हंसकर मुस्कुरा कर रहती है
जिसके बाद चेहरे की रौनक और भी बढ़ जाती है
उन दिनों में डरी–डरी सी वो रहती है
ना जाने कैसे वो यह दर्द छिपा जाती है
मूड स्विंग्स होने पर चॉकलेट्स और कॉफी
से मन बहलाती है
आधी रात को जब मम्मी कहकर पुकारती है
जानते हुए भी मम्मी घबरा कर आती है
गर्म पानी की थैली से सहराती है
फिर गोद में सर रखकर लोरी गाकर सुलाती है
जब दफ़्तर, स्कूल, कॉलेज जाती है
तो मंदिर-मस्जिद की अनुमति क्यूं नहीं होती है
आज भी कुछ जगहें ऐसी हैं
जहां पर इस बात पर खुल कर बात नहीं होती है
जहां पर इस बात पर खुलकर बात नहीं होती है।
Osm lines 😍🔥
Such a masterpiece !!!❣️👍👏
𝚅𝚎𝚛𝚢 𝚝𝚑𝚘𝚞𝚐𝚑𝚝𝚏𝚞𝚕 𝚊𝚗𝚍 𝚍𝚎𝚎𝚙 𝚕𝚒𝚗𝚎𝚜
Your lines touch my heart…❤️❤️❤️❤️
One of the best poem, I have ever read👍
Superb, beautiful lines😊