Pehel, to begin – Delhi Poetry Slam

Pehel, to begin

By Monica Sharma

पहल (to begin..)

पहले दिन से कर पहल,
कर वही तू फिर से कल;

परसों तू थक जाए तो,
मन ये भटक जाए तो;

साथ में न हो कोई,
या खोए भीड़ में कहीं;

तो पूछना ये खुद से तू,
की थी शुरुआत क्यूँ?

आज से आगाज़ कर,
थोड़ा या अधिक मगर;

शर्त है रुके बिना,
रुक गए तो क्या जीना?!

ये वक़्त तो सोता नहीं,
अछा बुरा होता नहीं;

मोहलत मिली है शुक्र कर,
ना फिक्र नाउम्मीदी का जिक्र कर;

सपनों को दे आसरा,
अतीत से क्या वासता?

गड़ेगी जहां तेरी नजर,
निकलेगा नया रास्ता;

गिला नहीं जो मिला नहीं,
जो आयेगा वो जाएगा;

तुझमें है सब कुछ तेरा,
बाहर क्या ढूंढ पाएगा?

तो चल, बदल, सम्भल, निकल, दिखावे के नकली महल;
तो चल, बदल, सम्भल, निकल, पहले दिन से कर पहल;

तो चल, बदल, सम्भल, निकल, दिखावे के नकली महल;
ले के तेरे साथ तेरी प्यास तेरी आस्था;

तो चल, बदल, सम्भल, निकल, तू कर पहल, तू कर पहल,
ले के तेरे साथ तेरी प्यास तेरी आस्था...

है रात ये घनेरी है सवेरे में भी देरी,
ना आसरा किसी का संग सांसे चंद तेरी,
हैं बस वही जरूरी भूल सारी मजबूरी,
बेड़ी बने कदम की करके उससे कोसों दूरी,
तू भ्रम सभी के तोड़ दे,
तू कल की कल पे छोड़ दे,
भरा जो बरसों बूंद बूंद आज में निचोड़ दे,
नियम बदल के सब पुरानी नीतियों को मोड़ दे,
बिखरते सपने जोड़ दे,
खुद अपनी हद को तोड़ दे...

कह दे हर ज़ख़्म से तू की दो दिनों के बाद होंगी उस की खातिरें भी कम के दर्द ना रहेगा तब;
कह दे अपने आंसुओं से बह गए जो ले गए वो मन से धूल की परत, साफ दिख रहा है सब;
कह दे इस समाज को कि खुद करे इलाज वो, है उसकी सोच से कहीं परे तेरी उड़ान तो,

तठस्त हो, समर्थ हो, समझ ये आ गया है तो,
जला के चल तू लॉ से बनते बन गई मशाल को;

ये भूख है, बीमारी है पड़ पड़ी जो सब पे भारी है,
लोग क्या कहेंगे? क्यूँ ना कह दे तू भिकारी है;

भुला दे वक़्त क्या हुआ, रात से हुई सुबह,
तू बन के सिरफिरा चला ना सर्दी धूप से डरा;

रुका हुआ तो क्या हुआ जो गिर के फिर खड़ा हुआ,
तू ढीठ सा अकेला अपनी जिद पे है अड़ा हुआ;

कदम बड़ा कलम चला बना वज़ूद को वजह,
मचा के शोर सब को गहरी नींद से तू दे जगा!!!


Leave a comment