By Payal k Suman
कलयुग के ओ युग- पुरुषों लो बात हमारी गांठ बांध,
तुम जैसे रहो मैं वैसी बनूं और चलूं तुम्हारे साथ-साथ।
जो बनो कृष्ण मैं राधा बनूं मैं बनू राम के सीता,
जो ध्यान लगाकर पढ़ो मुझे तुम बन जाऊंगी गीता ।
पर अगर बने जो रक्तबीज में रक्त तुम्हारा पी जाऊं,
बन कालरात्रि तेरे मुंडो की माला खुद को पहनाऊं।
तुम बनो दुष्शाशन द्रौपदी मैं, तेरे रक्त से खुद को नहलाऊं,
बन बैठो जो रावण अगर तुम, हर साल तुम्हें मैं जलवाऊं।
प्यार पाकर बनूं प्रकृति ममता से तुम्हें मैं नहलाऊं
करो खिलवाड़ जो मेरे संग तुम खुद के अंदर हीं गड़वाऊँ,
मैं रंगू तुम्हारे रंग में और तुम जैसी हीं मैं बन जाऊं।
लो कह दिया ना बीच में ही बात काट फिर से तुमने,
“यह झूठे बातें खारी है”
तो कलयुग के ओ नर सुनो, तुम्हारे साथ खड़ी वह आरी है।
तुम कलयुग के हो नर यदि तो, कलयुगी वो नारी है।
यह झूठ बोलना खेल खेलना तुमसे ही सीखी सारी है,
सब देख कर भी नहीं रुके, तुम्हारा आतंक अभी भी जारी है।
तो फिर लो, अब कहना मत यह चीख कर की ये उपहार कहां से आया है,
कल उठा था मुझ पर हाथ ये, डाकिया वही हाथ तो लाया है।
पर यह क्या? तुम जैसी बनकर मैं क्यों इतना धिक्कार पाऊं तुम बन गए हो राक्षस सारे, फिर क्यों ना मैं भी राक्षसी बन जाऊं।
तुम बात बात पर चिल्लाते हो, फिर मैं भी क्यों न चिल्लाऊं
जो नहीं चाहते यह सब तो तुम, बनो न सतयुग के नर,
फिर मैं भी सतयुग कि नारी बन जाऊं।
और बन सावित्री अड़ जाऊं यमराज से भी तुझे मांग लाऊं, तुम भी बनो फिर सत्यवान जिसके बिना मैं रह ना पाऊं।
त्याग दूं मैं महलें भी और करूं संग श्मशान वास,
तुझ में खुद को खो दूं मैं, मैं बनूं गौरा तुम भोलेनाथ।
मैं करूं तुम्हारी प्रतीक्षा और कर सकूं तुम पर विश्वास,
मानो या ना मानो तुम यह आज भी है एक नारी की आस।
तुम बनो न नारायण फिर मैं भी लक्ष्मी बन जाऊं,
तुम बन जाओ फिर देव मेरे, मैं फिर से देवी कहलाऊं
मैं फिर से देवी कहलाऊं।