ध्यान – Delhi Poetry Slam

ध्यान

By Pankaj wasinee

उन्होंने जाति नहीं पूछी...
वर्ण नहीं पूछा...
भाषा नहीं पूछी...
प्रांत नहीं पूछा...

पूछा सिर्फ धर्म!
और चुन-चुन कर मारा...
निर्दयता की सारी सीमाएँ तोड़ डालीं!
उनकी नृशंसता को देख:
पाशविकता भी लजा उठी!!
मानवता थर्रा उठी घाटी में!!!

अब
तुम्हें ध्यान रखना होगा
कि
तुम्हें जाति के नाम पर
बँटना नहीं है!
प्रांत और भाषा का भेद
पालना नहीं है!!
ऊँच-नीच, अमीर-गरीब,
अवर्ण-सवर्ण, शिक्षित-अशिक्षित,
ग्रामीण-शहरी, सभ्य-भदेस,
सुसंस्कृत-फूहड़, ज्ञानी-अज्ञानी,
बुद्धिजीवी-साधारण:
— देखना नहीं है!

बस
गाँठ बाँध लो
कि
तुम्हें संगठित होना है!!
ध्यान रहे:
संघे शक्ति कलियुगे!!!

बस
माँ भारती के अमर सपूत
स्वामी विवेकानंद जी की
वह अनमोल सीख
अवश्य ध्यान में रहे-

"उठो! जागो!! चलो!!!
और तब तक चलते रहो
जब तक कि तुम्हें
तुम्हारा लक्ष्य प्राप्त न हो जाए!!!"


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