Sindoor – Delhi Poetry Slam

Sindoor

By Pankaj Pandey

फिर कभी हाथ न लगाना
हिंदू नारी के लाल -सिंदूर को
श्रृंगार यह, रक्त बहा देता है
जब खौलता है, प्रतिशोध को

बहन, बेटियां ,नारियां अपने भाल पर
रखतीं है लाल-सिंदूर संभाल कर
की हिमाकत इसे छूने की अगर दुश्मनों
रख देंगे हम तुम्हारी गर्दनें उछाल कर

देखकर स्त्रियों के सिंदूर लाल
दुष्टों, दबाये अपने फितूर रखना
कालनेमियों तुम अपनी चाल
इन शेरनीयों से दूर रखना

सिंदूर से खुशियां हैं परिवार में
प्रतीक है प्रेम का, यह सिंदूर संसार में
यदि आंच आए कभी इस पर
तो बारूद है, यह जुल्म के प्रतिकार में

सात जन्मों की डोर है सिंदूर ये
इसे तोड़ने की जुर्रत ना करना
हिन्द की नारी, काली का रूप भी है
जिहादियों, इन्हे मामूली औरत ना समझना

फिर कभी हाथ न लगाना
हिंदू नारी के लाल -सिंदूर को
श्रृंगार यह, रक्त बहा देता है
जब खौलता है, प्रतिशोध को ।


Leave a comment