तितली – Delhi Poetry Slam

तितली

By Pallavi Bhardwaj

इक चंचल, रंग-बिरंगी तितली
रोज़ बगिया में आती थी,
इतराती थी, इठलाती थी,
हर दिल भा जाती थी।

हर फूल यही चाहे
कि वो उससे मिलने आए,
पर तितली के मन में तो
बस एक ही फूल समाए।

सबकी चाहत देख
मन उस फूल का घबराया,
तितली को पास बुलाकर
उसे यह समझाया—

"रंग तुम्हारा मोहक है,
मुश्किल है सबका आकर्षण हटाना,
कल जब बगिया में आओगी,
तो रंग मिटा कर आना।"

सुन कर तितली सुन्न रह गई—
"ये किस बात की सज़ा मैं पाऊँ?
रंग मिटे न मिटाने से,
क्या पंख कटा के आऊँ?"

"पंख मेरे जो कट जाएंगे,
जीवन रिक्त सा हो जाएगा,
पर साथ फूल का छूट गया तो,
जीवन मृत सा हो जाएगा।"

सोचा बहुत तन्हाई में,
सोच-सोच में समय बिताया,
जीवन तो प्रिय फूल से ही है—
यह दिल ने दिमाग को बतलाया।

क्या इतराना, क्या इठलाना,
अब मुझे है किसे रिझाना?
रंग गर मिट जाएं तो क्या है,
पंख गर कट जाएं तो क्या है?

फूल पर न्योछावर जीवन सारा,
रंग उसी का खूब चढ़ेगा,
दुख न होगा पंख कटने का,
प्रेम-परों से दिल उड़ेगा।

सुबह हुई, होश जब आया,
कटे परों को दूर फेंका पाया।
ग़म न था, ना उड़ पाने का,
पर ज़ख्म देखकर दिल करहाया।

मन से हर्षित,
पर दिल से उदास,
आज वो पर-कटी तितली
आई है मेरे पास।

जाना उसे दूर है,
पंख बिना मजबूर है।
कौन सी छोटी राह सुझा दूँ?
कैसे पंख नए लगा दूँ?

बस में मेरे तो कुछ नहीं,
हिम्मत कर फिर एक बात कही—
"बिन परों के क्या कर पाओगी?
नन्ही जान हो, यूँ ही मिट जाओगी।

सुंदर पंख तो कट गए तेरे,
अब क्यों इतना इतराती हो?
थम जा, न जा यहाँ-वहाँ,
तुम अब न किसी को भाती हो।"

"सुंदर तो मन है मेरा,
तूने मुझे कहाँ जाना है?
रुकना नहीं है फ़ितरत मेरी,
हर रस मुझे तो पाना है।

हौसला न टूटे मेरा,
मन से उड़ती जाती हूँ,
मोहक रंग हैं हर ओर मेरे,
इस बात पर इतराती हूँ।

पंख कटे तो मरे तितली—
सबने यही तो बतलाया है,
मैं भी इसी भ्रम में थी,
जो आज उसने झुठलाया है।

कोमल मन का संकल्प वही है,
वैसी ही ऊँची उड़ान है।
बगिया की रौनक फूल भी, तितली भी—
इक हँसी, तो दूजा मुस्कान है!!


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