By Nivedita Pandey
बरसो बाद आई खिलखिलाने की आवाज,
आया नया मेहमान लेकर अपना मिजाज़
पर ख़बर आई कि वह मेहमान थी बच्ची,
घर में एकदम से मायूसी छाई बात ये बडी सच्ची
नन्ही सी जान थी वह, रंग से सावली;
सबने कहा बताओ "कौन करेगा इससे शादी?"
पल में ही खुशी बन गई बोझ,
ऐसा पहले कहीं और भी हुआ है, यह कैसा है संजोग ?
पल पल उसे बुरा महसूस कराया,
नहीं है तू अपनी, सिर्फ एक धन पराया!
फिर भी उसने कभी हार ना मानी,
हमेशा सुनी दिल की और कि मनमानी।
जब जब उसने साहस दिखाया,
दुनिया ने उसे महसूस कराया,
तू है एक औरत, बात आई समझ में?
अपनी मर्यादा से बाहर मत
जाना, रह अपनी हद्द में !
समाज के कानून उसे समझ न आए
क्यों ये बेटियों को कहते है पराए?
किस बात की मिल रही है मुझे सज़ा ?
हताश होकर उसने पूछा,"आखिर कहाँ है मेरी जगह?"