बढ़े चलो – Delhi Poetry Slam

बढ़े चलो

By Nitin Sharma

ये वृक्ष जो हो देखते
विराट से खड़े हुए
थे पौधे ये भी तो कभी
समय लगा बड़े हुए

हवाएं सनसनाएंगी
लहरें ज़िद पे आएँगी
बढ़े चलो चढ़े हुए
चढ़े चलो अड़े हुए

जो आँखों ने तुम्हारी देखा
कौन समझेगा यहाँ
तुम्हे पता हैं रास्ते
और मंजिलें रखी कहाँ

कदम चलेंगे और
हाथ कर्म होगा तुम से ही
गिरो अगर, डरो नहीं
गिरे कई खड़े हुए

जो हौंसला बुलंद हो
आग जब प्रचंड हो
न कोई रोक पायेगा
विश्वास जब अखंड हो

विश्वास हो खुदी पे
और खुदा पे जो है देखता
संभालता है वो तुम्हे
हों नैन जब भरे हुए

ये वृक्ष जो हो देखते
विराट से खड़े हुए
थे पौधे ये भी तो कभी
समय लगा बड़े हुए


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