सरहद के निगेहबान – Delhi Poetry Slam

सरहद के निगेहबान

By Nita Sahay 

सरहद के निगेहबान 
क्या  लिखुँ मैं तेरे लिए, ओ मेरे शूरवीर जवान, 
लेखनी में मेरे वो दम नहीं, जो कर सके तेरी बखान, 
शब्दों में ढल ना सके जो, ऐसी विभूति हो तुम महान,
ओ भारत माँ के वीर सपूतों, तुमको हमारा लाख सलाम।

चाहे शैल हो या समन्दर,चाहे हो आकाश, 
कोई परिन्दा पंख न मारे, हो जब तुम-सा पहरेदार, 
चाहे पारा माइनस छब्बीस, या हो पचपन के पार,
सीमा के सेनानी रखते हरदम, राष्ट्र की ऊँची शान। 

तुम हो तो है मेरी हस्ती, वतन के तुम हो अभिमान, 
हम बैठे हैं यहाँ घरों में, तुम जो हो सरहद के निगेहबान, 
लहराये जो आसमाँ में तिरंगा, देखे सारा देश-जहान 
कारगिल हो या द्रास की धरती, रचा है तुमने इतिहास।

विजय अभियान पर निकल पड़े तुम लेकर जब ऊंची उड़ान, 
तेरे दम पर उल्टी पड़ गई घुसपैठियों की हर चाल, 
लहु बहाया पर्वत पर कि ना झुके वतन का भाल,
कतरा-कतरा अपनी काया की कर दी देश के नाम।

तीन रंग के वस्त्र में लिपटे जब तुम आए घर के द्वार,
याद आया तुमने कहा था भले ही जाए मेरी जान, 
पर युगों युगों तक अटल रहेगा मेरा हिंदुस्तान। 
ओ मेरे वतन के रखवालों करते हैं हम नमन तुम्हें,
नमन तुम्हें बारम्बार, नमन तुम्हें बारम्बार।


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