By Nishi Ratnam
सूने नयनों से तटस्थ खड़ी थी,
सुभद्रा ले स्वागत की थाल,
राखी पर मधुसूदन आये,
नयन झुकाये बहन के द्वार।
मौन नहीं सह पाए केशव,
बोल पड़े ले हॄदय उद्गार,
कंठ अवरुद्ध था फिर प्रयत्न कर,
पूछ लिया बहन का हाल।
भैया कैसी होगी वह माता,
पुत्र रत्न अपना खोकर,
बस दिन अपने काट रही हूँ,
बोझिल स्मृतियों से लड़कर।
आज न मांगूंगी मैं तुमसे,
रक्षा का कोई वरदान,
मरुस्थल से मेरे जीवन में,
क्या माँगूँ - बूंदों का दान।
रहता है मन मेरा व्याकुल,
भैया तुम से कुछ कहने को ,
हॄदय की पीड़ा से उद्घृत कुछ ,
प्रश्नों के उत्तर पाने को।
माधव अब हो चले थे व्याकुल,
चिंतन में डूबे, सकुचाये से ,
अप्रत्याशित से प्रश्नों पर,
केशव थे घबराये से।
क्या प्रेम से बड़ी मित्रता,
हो चली तुमको प्यारी ,
जो ब्याहा मुझ को अर्जुन से ,
जान मेरी सारी नियति।
कोप द्रौपदी का सहकर भी,
तुम पर न विश्वास डगा,
रक्षा के इसी बंधन पर,
मुझको कितना मान रहा !
और मिला पुत्र सौभाग्य पर,
वह भी न शाश्वत रहा,
तुम से पाना एक चेतावनी,
इतना न अधिकार रहा ?
और न कुछ तुमको करना था,
इतना उपकार ही करना था,
अभिमन्यु के जीवन यज्ञ में ,
निद्रा दान कराना था।
मैं जग कर तब सींच सींच कर,
उसे सिखाती हर वह ज्ञान,
जीवन मरण के विषम युद्ध में ,
करना था निद्रा बलिदान।
सोच सोच कर ग्लानि सहती,
काट रही जीवन पथ को,
पालक झपकने पर भी दिखती,
युद्ध भूमि की छवि मुझको।
तुमने तो विश्व रूप दिखा कर,
पति को मेरे दिया हर ज्ञान,
भोली माता से मौन रहे तुम,
क्या है यह गीता दृष्टांत।
सुन कर सजल हुए नेत्रों से ,
गोविन्द दुःख से अशांत हुए ,
बहन को अपने गले लगा कर ,
कुछ कहने का साहस कर पाए।
पुरुष का मन होता है दुर्बल,
अर्जुन का तुम से कैसा मेल,
सुभद्रे मैं तो स्वयं याचक हूँ
जन्म लिया, पाने तुम से।
प्रेम निःस्वार्थ और भक्ति निरत,
जो तुम करती रही मुझ से,
बिन विवाद के जिसने अपनाया,
हर निर्णय मेरे आग्रह पे।
बस यही अधिकार पाकर मैं तुम पे,
भविष्य नियोजन कर पाया,
अभिमन्यु तुम्हे देकर सुभद्रे,
पांडव जय निश्चित कर पाया !
पुरुष का मन होता है दुर्बल,
उससे क्या पाता आहुति !
माता से ही देव कर पाते ,
अवांछित बलिदानों की विनती।
माता को क्या सिखलाऊँ गीता ,
निष्फल कर्म वह स्वयं जीती ,
निज के शरीर का कर के तर्पण,
सृष्टि में जीवन उपजाति।
तुम जैसी जब भी कोई माता,
देगी पुत्र का ऐसा बलिदान,
हे सुभद्रे हर युग में होगा ,
माधव से बढ़ कर उसका मान।