By Nisha Bhasin
आंतक, डर या ज़ोर से,
अधिकार नहीं मिलते, मचाने शोर से
दिखाकर मासूमों, बेगुनाहों को अपना डर,
क्या पा लेंगे ये दहशत गर्द इंसानियत का खून कर
न जी पायेंगे ये कभी भी सकून से,
खुद ही लथपथ पड़े होंगे ये भी कभी खून से
घर-बार तो इनके भी होते है कहीं ,
माँ ने इनकी भी सिखाया होगा बुरा कभी किसी का न करना, ये न होता सही
तो फिर क्यूँ चंद सिक्को की खातिर,
बेच देते है ये अपना ज़मीर
असली दौलत तो है प्यार बाँटना,
उसी से तो होता है बंदा अमीर
क्यूँ राह चलते मासूमों पर ये गोलियाँ बरसाते हैं,
क्यूँ इन्सानो की लाशों पर ये अपना जहाँ बनाते हैं,
ये ऊपर वाले की बनायी दुनिया है, सबके लिए
सारा संसार है एक परिवार जैसा, सब ही जिये
हर एक के दर्द का इनको भी कुछ अहसास हो
न केवल अपने रिश्ते नाते, हर इंसान इन के लिए भी खास हो
न तब पड़ेगी ज़रूरत मासूमों का खून बहाने की
यहीं मिल जाएगी जन्नत और दुआएँ सारे जमाने की ||