भगवान का दर्शन नोटों से – Delhi Poetry Slam

भगवान का दर्शन नोटों से

By Niraj Pandey


देखा मैंने मंदिर में, भगवान का दर्शन नोटों से।
जो नोट नहीं तो देखो तुम, भगवान बस परकोटों से।

ये रीति कहाँ से शुरू हुई, क्या प्रभु रीझेंगे इन सबसे?
झूठ दिलासा दो ना तुम, निज आँखें मीचे हो कबसे।

प्रभु तो बसते हैं अंतस् में, नोटों से उन्हें प्रलोभन क्या?
वे तीनों लोक के स्वामी है, गर रीझ गए तो मोहन क्या?

भाव अगर मन में है तो, वे स्वयं बुलाने पर आते।
क्या देखा तुमने शबरी और मीरा को मंदिर में जाते?

देख सुदामा की पीड़ा,प्रभु मलहम स्वयं लगाए थे।
द्वार पे पहुँचे जब दीन मित्र,नंगे पांव ही दौड़े आए थे।

पग धोए थे निज अश्रु से और तन्दुल चाव से खाये थे।
पकवान तजे दुर्योधन के और साग विधुर घर पाए थे।

जूठे बेर शबरी के , प्रभु को बड़े ही भाये थे।
चावल के एक दाने से , ऋषियों की क्षुधा मिटाये थे।

ऐसे प्रभु को क्या तुम इन, भौतिक वस्तुओं से तोलोगे!
मन में भरकर पाखंड दंभ,तुम राम कृष्ण हरि बोलोगे?

ऐसे तो प्रभु ना भेटेंगे, तुम्हरे इन सिक्के खोटों से।
देखा है मैंने मंदिर में, भगवान का दर्शन नोटों से।

 


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