समय ही सत्य है – Delhi Poetry Slam

समय ही सत्य है

By Dr. Nilutpal Mahanta

समय स्थितप्रज्ञ है,
बीत गया जो, वह तुम्हारा और मेरा है।
समय तो अडिग है,
होनी को क्या कोई बदल पाया है?

राम के हाथों से बाली का मरना,
जरा के हाथों से कन्हैया का,
खेल बस समय का है।
बीता जो है, लौट के आता,
सही समय सबको दिखलाता।

डमरु अगर अनंत है,
महाकाल उसके रक्षक,
फिर भी नीलकंठ के
बुरे दिन क्यों आते हैं?

समय को बाँध न पाया कोई,
गति उसकी निश्चित है,
फिर भी मंथर हो जाता है
दुखों के दिन जब आते हैं।

ना बदलता यह मौसम के साथ,
ना सूरज के आने-जाने से,
गाथा उसकी हर ज़ुबान पर,
परिभाषा किसी को न आती है।

समय ही सृष्टि है,
समय ही अंत,
संसार की इस भूल-भुलैया में,
यही तो मात्र एक सत्य है।


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