By Niharika Jajoria
आज़ादी का दिन फिर से आया
फिर से लड़कियों के मन में ये सवाल आया
क्या सच है हम आज़ाद हैं?
जब हर कदम पे मन में डर समाया?
हम पढ़ रहे हैं, काबिल बन रहे हैं
पर अभी भी अपने कपड़ो की लंबाई नाप रहे हैं
हम ऑफिस जरूर जा रहे हैं,
लेकिन साथ में अपनी लाइव लोकेशन भेज रहे हैं
स्कूल टीचर से, या ऑफिस वर्कर से
ढोंगी बाबाओं से या अपने रिश्तेदारों से
कब तक बचेंगे सबकी नजरों से
कब तक जियेंगे इस कदर डर में?
जिस देश में देवी की हफ़्तों पूजा करते हैं
उस देश में एक वस्तु की तरह लड़कियां रोंद देते हैं
लड़कियों को ना सिखाओ डर और पहनवा,
लड़कों को सिखाओ कानून और पछतावा
निर्भया हो या उन्नाव या हाथरस
छोटी बच्ची हो या एक डॉक्टर
आसाराम हो या राम रहीम, सब एक कहानी
उतनी ही घिनोनी, और कोई पुरुष अत्याचारी
जब तक नहीं होगी समाज में बाराबरी
कभी भी हो सकती है आपकी या मेरी बारी
अक्सर कुछ लोग कहते हैं, "Not all men”
But guess what, It’s always a man!