By Neha Rai
रात से दिन ,दिन से रात की
तू तो न था , पर तेरी ही तुझसे बात की
बहुत सी बातें थी, शिकस्त की और मात की
गुज़रते हुए लम्हात की ,तेरे साथ की
एक ऐसे ख़्वाब की ,
न होते हुए भी होना तेरा , इस हालात से निजात की
तेरे इस आघात की , शहर- ए - ज़ात की ,
अर्थ के अर्थात् की , इस ज़िंदगी के बाद की ।
तो गिला क्यों करूँ ?
तुझसे ना मुलाक़ात की और ज़मींदोज़ इन जज़्बात की
कि ये मनचला मन तो तब भी न डरा ,
जब तू ने जा कर कभी ना लौटने की बात की
मसला -ए - ग़ुरूर न समझना इसे , इश्क़ है मेरा
कि तेरे जाने पर लगाएँगे आवाज़ तक नहीं ,
मेरे पलके मींचते ही तू बेमर्ज़ी भी यहीं होगा
मोहब्बत की इन ताक़तों का ,
मेरी ज़ान तुझे अंदाज़ा तक नहीं
रात से दिन ,दिन से रात की
तू तो न था , पर तेरी ही तुझसे बात की …