By Neha Barretto
लो, एक और साल बीत गया,
फिर एक बार वक़्त हमसे जीत गया।
अब क्या, लग जाएँगे फिर
तैयारी में नई,
क्योंकि अब भी पूरे करने जो हैं ख़्वाब कई।
बेसब्री अब सब्र का दूसरा नाम बन चुकी है,
कुछ कमज़ोर टहनियाँ पेड़ की, ज़मीन की ओर झुकी हैं।
सोचती हैं-
काट कर बिखर जाना ही क्या बेहतर है अब?
नई उपज को मौक़ा दे देना ही बेहतर है अब।
तो चलो,
कुछ नई क़समें ले लें,
कुछ नए वादे कर लें।
आओ नए साल में कुछ नए इरादे कर लें।
उन्हें पूरा कर न पाए तो ग़म नहीं करेंगे,
किसी और की ज़िंदगी जीने की कोशिश अब हम नहीं करेंगे।
ख़ुद को अब हम जान चुके हैं,
अपनी खूबियों को पहचान चुके हैं।
देर से ही सही, पर नज़र तो आई-
घने काले बादल के पीछे चमकती परछाई।