By Navjyot Birdi
देखी आपकी जवानी जितनी देख सकता था
देखी आपकी कुर्बानी जितनी देख सकता था
पूछी नहीं आपसे पर देखी आपकी ज़िंदगानी जितनी देख सकता था
अपनी सहूलियत के हिसाब से बेशक दौड़ा उसी कमरे से जिसमें आप आए
अपनी सहूलियत के हिसाब से उसी कमरे में चलता आया फिर जिसमें आप रहे
ना आपने बताई... ना मैंने कभी पूछी...
बाप हो आप
बेटा बनके कहानी देखी हमारी जितनी देख सकता था!
माँ से रिश्ता बेशक दिखता ज़्यादा था पर आपसे रिश्ता दिखाना फ़िजूल था...
और हो भी क्यों नहीं...
जब माँ के बस के बाहर मैं जाता तब आपका हाथ ज़रूरी था....
आज भी कभी जब याद आई आपकी मार
साथ ही मेरी बनावट में आपका ही ज़िक्र था....
मैं मानता हूँ कि बढ़ती उम्र के साथ घटता हमारा वक़्त गया....
पर मैंने आज भी यही माना कि बाप, दोस्त या नायक कोई बेहतर आपसे मिला नहीं
ना ढूंढने की चाह कभी रही।
दूरी ज़रूर बढ़ी पर फ़ासले नहीं....
कुर्बानी आपने दी पर बाप तो मेरा भी दूर होते मैं देख सकता था.....