कृषक का संघर्ष – Delhi Poetry Slam

कृषक का संघर्ष

By Naveen Yadav 

राजमहल में रहने वाले क्या जानें सच्चाई को?
घोर तपस्या करने वाले कृषक की कठिनाई को।
कर्ज लिया फिर बीज था बोया,सारी रात ख़ुशी से सोया।
अब रोज सुबह वो जाता है,
कितना अंकुरित हुआ है दाना,देख देख हर्षाता है।
सारी रात वो जाग जागकर खेत में पानी करता है 
हे मेरे मालिक कृपा करना ध्यान प्रभू का धरता है।
बड़ी हुई अब फसल है उसकी चहुँ और हरयाली छाई,
बजने लगे ढ़ोल नगाड़े खुशियों का सन्देशा लाई।
ज़ब बच्चे स्कूल से आये फीस का पर्चा साथ में लाये,
कृषक बोला कल आऊँगा मास्टर जी को बतलाऊँगा 
अच्छी हुई है फ़सल हमारी सही दाम में बिक जाएगी 
तब फीस जमा कर दूंगा सारी।

अब हुए सुनहरे दाने सारे,,उछल रहा था ख़ुशी के मारे,
साहूकार का कर्ज चुकेगा, दिल अब उसका नहीं दुखेगा 
तब मौसम ने बदली करवट छाने लगीं घनघोर घटायें 
आंधी और तूफान चले पशु पक्षी थे सब घबराये।
लगी बरसने बरखा रानी, हर तरफ था बस पानी ही पानी।
मुरछित हो गिर गया वहीं, अब द्वार हुए थे बंद सभी,
ज़ब आँख खुली तो खड़ा हुआ,बोला मैं हार ना मानूंगा 
जो फ़सल बची है बेच उसे मैं अपना काम चला लूंगा।
ज़ब फसल को लेकर मंडी पहुंचा भाव गिरे से दिखते हैं 
पूछा तो एक सज्जन बोला अब इसी भाव में बिकते हैं।
यहाँ बेचकर फसल को अपनी ज़ब घर को हम जायेंगे 
इसी फ़सल के भाव यहाँ पर आसमान छू जायेंगे।
मजबूरी है बेच दो भाई क्या यहाँ हमारी हस्ती है?
मनमानी इनकी ही होगी ये साहूकारों की बस्ती है।
 जितनी फसल बिकी थी उसमें कुछ आढ़त के काट लिए 
बाकी भी तो नहीं दिए थे वो किश्तों में बाँट दिए।
ये लो पैसे यही मिलेंगे बाकी कुछ दिन बाद तुम आना 
भीड़ बहुत है रस्ते में कोशिश करो संभल कर जाना।
रस्ते में अब खड़ा हुआ हैं असमंजस में पड़ा हुआ है,
बच्चों की फरमाइश है खेल खिलोने लाने हैं 

कपड़े भी अब नए बनेंगे वो भी तो बहुत पुराने हैं।
नमक ख़तम है दाल नहीं है राशन का सामान नहीं है,
थोड़ा थोड़ा सब ले लूँगा इसमें कोई अपमान नहीं है।
तभी जहन में ख्याल है आया, अगर ना मैंने कर्ज चुकाया 
साहूकार से दंड मिलेगा कर्जा भी फिर नहीं मिलेगा।
अभी फीस भी भरी नहीं है प्रतिज्ञा पूरी करी नहीं है।
ये कैसी विपदा आन पड़ी है?  जिम्मेदारी बहुत बड़ी है।

बच्चे सोच रहे हैं घर पर पापा ज़ब घर आएंगे,
खेल खिलोनों के संग में वो रसगुल्ले भी लाएंगे।
आपने घर के दरवाजे पर ज़ब खाली हाथ वो आता है 
उन मासूमों का नाजुक दिल तब चूर चूर हो जाता है।
कहाँ है मेरी गुड़िया रानी छुटकी रोकर कहती है,
छोटू की मोटर गाड़ी भी क्या बिन पैसे आ सकती है?

समझ चुकी थी विमला रानी उस मयूसी की सारी कहानी।
बच्चों की खुशियों की खातिर रसगुल्ले थे आप बनाये,
रुष्ट हुए उन बच्चों को दोबारा नए नए स्वप्न दिखाए।
बोली इस बार ज़ब फसल बिकेगी 
छुटकी की गुड़िया अलग दिखेगी।
छोटू की कार भी आएगी 
ज़ब रेस में वो दौड़ायेगा तो सबसे आगे जाएगी।

उन मासूमों के सपनों पर क्या फिर पानी फिर जायेगा?
क्या कृषक अपनी फसलों के अब सही दाम ले पायेगा?
क्या कृषक अपनी फसलों के अब सही दाम ले पायेगा?


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