वजूद – Delhi Poetry Slam

वजूद

By Musten Jiruwala

वक़्त का, जगह का मुझे एहसास नहीं
मेरा माज़ी नहीं, मुस्तक़बील नहीं

मुझे ख़ौफ़ नहीं, ख्वाहिश नहीं
हक़ीक़त ये है कि मेरा कोई वजूद नहीं

ये जिस्म
जो बड़ा होता है, बूढ़ा होता है, मर जाता है

ये जिस्म
जिसका माज़ी है, मुस्तक़बील है, पेहचान है

ये जिस्म
जिसे ख़ौफ़ है, ख्वाहिशें है, तकलीफ़ें है

ये जिस्म
जिसे एह्मियत है, मज़हब की, मुल्क की

ये जिस्म
ये जिस्म का वजूद मुझसे है

मगर हक़ीक़त ये है कि
मेरा कोई वजूद नहीं


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