By Vijay Bahadur Singh

मम्मी मुझको प्यारी है सारे जग से न्यारी है
चरणों में धरती है इसके अंबर इसकी साड़ी है
सूरज से पहले उठ जाती चंदा के संग लोरी गाती
कैसा भी मौसम हो ये कभी न हिम्मत हारी है
शूर और वीरों की गाथा संग पहेली अजब है नाता
कैसी भी उलझी हो ये पल भर में सुलझाती है
बप्पा को यें भोग लगाती सबसे पहले मुझे चखाती
मेरी बलाएँ लेने को मंदिर मंदिर जाती है