By Neelima Chakrabarty
कहते हैं ज्ञानी महात्मा,
तुम परमसत्य कहलाती हो।
टूटे सारे नाते रिश्ते,
तुम रिश्ता निभाती हो॥
चाहे कोई साथ ना दे,
थकित पथिक का।
शेष सैया पर तुम,
हमराही बन जाती हो॥
तुम अतिकटु पर नग्नसत्य हो,
लोगों को बहुत डराती हो॥
पर जीवन की मृगतृष्णा से,
दूर अवश्य ले जाती हो॥
जिंदगी की क्षणिक सुंदरता का,
सबको भान कराती हो।
चाहे तुमको कोई ना चाहे अपनाना,
पर तुम सबको अपनाती हो॥