कैलाश मानसरोवर यात्रा – Delhi Poetry Slam

कैलाश मानसरोवर यात्रा

By Monika Mittal

ना शाख कोई, ना फूल
ना पुलकित ना जर्जर.
सीधी सपाट वह राह थी
समुद्र तल से बहुत ऊपर.

बहुत ऊंची श्रृंखला एक, पर्वतों की
दिख रही थी दोनों ओर जो निरन्तर.
गांव कस्बे पार करते चल रहे थे
अपने मन में हम ‘उन्हीं’ का ध्यान धरकर.

पहुंचे वहां ,दर्शन हुए 
कैलाश जी के.
सामने उस दृश्य के
सब दृश्य फीके.

सोचकर कि वास है यह
सिहर गया था.
मन ये मेरा ,भावनाओं से
भर गया था.

फिर हुई पदयात्रा वह
तीन दिन की.
थी अलौकिक शक्ति कोई
साथ चलती.

नीर नीला, नीला अंबर
अकल्पनीय वातावरण था.
महसूस होता कोई बदलाव- सा
हर एक क्षण था.

पास तट के जब खड़ी थी,
देखकर पर्वत व अंबर
लग रहा था बादलों से
आ रहे हैं ‘वो’ उतरकर.

अविस्मरणीय हर एक पल
स्पष्ट हर एक याद है
भूलें कभी, लगता नहीं
हर बात मन में व्याप्त है.


5 comments

  • Beautiful poem

    Sanjeev Gupta
  • Such a beautifully expressed poem on the visit to Mansarovar. Makes one feel one is there.

    Sangeeta
  • Beautifully expressed amazing
    Namaha Shivaya 🙏🏻🌹

    Meena
  • Very very beautifully written and expressed

    Rakhi
  • Beautiful poem very well written

    Saloni

Leave a comment