By Mohit Singh

कण की कठोरता में विद्यमान हैं वो,
रेशम की कोमलता से सौम्यवान हैं वो,
गीता के ज्ञान से अधिक ज्ञानवान हैं वो,
बुद्धि और तर्क से परे अंतरज्ञान हैं वो।
अनुमति देने वाले वो, निषेध करने वाले वो,
आरम्भ भी वो, अंत भी वो और स्वयं में अनंत भी वो।
सर्वोपरि योद्धा वो और प्रेम की परिभाषा वो,
नियत भी वो और नियति भी वो,
बंधन भी वो और मोक्ष भी वो।
अनंत कलाओं के स्वामी वो,
तुम्हारे भाव के झूठे फलों को लालायित वो।
अरे, भाव से बंधना चाहते वो,
यशोधा मैया जैसे बांध सको तो बांध लो,
वरना दुर्योधन के बांधने के प्रयत्न का हश्र
विश्व को दिखाने वाले वो।
हैं करुणा के सागर वो,
भाव जगाकर भाग्यशाली बनो,
अथवा इस सृष्टि के कालचक्र में,
कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले वो।
Very nice👍👍
Very good poem❤️
Nice Kavita