By Minakshi Joshi
संघर्ष-पथ पर जब-जब
विचलित हो गिरूंगा,
बन के खुद का संबल
मैं दो पग और चलूंगा।
असफलताओं से घिरकर
जब हताश हो रो पड़ूंगा,
तब हौसले की लौ जला
उम्मीद का दीप बनूंगा-
मैं हार नहीं मानूंगा।
हर पग बढ़ते कदमों को
आगे लेकर जाऊंगा,
भटकूं कभी जो राह से
तो मन को यह समझाऊंगा।
बनके खुद पथ-प्रदर्शक
मंज़िल को भी पाऊंगा,
बिना थके, बिना रुके
अंत तक लड़ता जाऊंगा-
मैं हार नहीं मानूंगा।
निराशाओं से थक-हार
जब भी घुटने टेकूंगा,
तब सब्र को हथियार बना
जीत का बारूद भरूंगा।
प्रतिस्पर्धा नहीं किसी से,
ना किसी को पीछे करूंगा,
हर दिन खुद से बेहतर बन
थोड़ा और आगे बढ़ूंगा-
मैं हार नहीं मानूंगा।
क्यों डरूं असफलता से,
जब जीवन ही संघर्ष है?
भेदकर हर चक्रव्यूह
सारे युद्ध भी लड़ूंगा।
हृदय की हर वेदना
चुपचाप मैं सहूंगा,
आगे बढ़ कर्तव्य-पथ पर
किंचित न भयभीत हूंगा।
विश्वास है परिश्रम पर अपने,
अब जल्द ही अपनी
जीत का उद्घोष करूंगा-
मैं हार नहीं मानूंगा।