By Sundeep Koul
जल थल और वायू का बल बुझाओ में लेके जब वो घूमा,
अपने शौर्य की पताका को धरती से आसमां तक जिसने चूमा।
वीर की वीरता जिसके राग और हर रग रग में है गहराई,
वोह कोई और नहीं इस भारत के वीरों में बर बर के पाई।।
मेरा देश मेरी मिट्टी तुझे मेरा नमन।
हुंकार की गर्जना हमने मेघों से सीखी,
सूरज से ताप से पैनी नजर हमने और कहीं ना देखी।
बाज़ का संयम और उसकी गति का जिसका कोई ना जोड़,
हवा की दिशा और बहते पानी को भी जो दे मोड।
मेरा देश मेरी मिट्टी तुझे मेरा नमन।
थल में जिसने दुश्मनों को लोहे के चने दिए चबा,
सीमाओं के वीरों ने उनकी गर्दन को पैरों तले दबा।
हिमाचल की ऊंचाई के जस्बे का जहां कोई नहीं हिसाब,
थल के वीरों ने दिया इस मिट्टी को अपने लहू का लाभ।
मेरा देश मेरी मिट्टी तुझे मेरा नमन।
तुम वायु में भी प्रबल जब जब असमान में कड़के,
दुश्मनों की आंखे क्या उनकी आत्मा भी फड़के।
उनके दिलों में खौफ का तांडव तुमने मचाया,
सुलगते अंगारों को सशक्त विमानो से नचाया।
मेरा देश मेरी मिट्टी तुझे मेरा नमन।
जल में सिंदूर का जिसने रंग दिया मिलाए,
वायु और थल के आक्रोश का पेड़ा दुश्मनों को खिलाए।
उन जल के वीरों ने कार्य की परिक्रमा पूरी कराई,
दुश्मनों की सेनाओं को शिकस्त को मिट्टी चटाई।
मेरा देश मेरी मिट्टी तुझे मेरा नमन।
मां भारती की सेवा तुम जी जान से बरते,
देश और दिशाओं का तुम संरक्षण जो करते।
दिल दिया उस हौसलों को जिसमें तुम हो समाए
"हर करम अपना करेंगे ए वतन तेरे लिए" तुम यूंही नहीं रमाए।
मेरा देश मेरी मिट्टी तुझे मेरा नमन।