तुम ही इंसान हो क्या? – Delhi Poetry Slam

तुम ही इंसान हो क्या?

By Mehvish 

कुसुम खिले, मेघ बोलते थे,
पेड़ भी हर्ष से डोलते थे,
पथ के कंटक पुष्प बन जाते,
पर्वत भी द्वार खोलते थे,
जीवो का मन झिलमिलाया,
प्रफुल्लित पंछियों ने गाना गाया,
यू लगता था मानो,
अप्सराओं ने भी सुर मिलाया,
धरा झूमि, गगन खिलखिलाया,
नंगेपाओं जब मैं भू पर आया,
आसमानों ने भी सर झुकाया,
मिट्टी ने यह प्रशन उठाया,
"अरे! लोगो के कहे भगवान हो क्या?
मेधा दिव्य, अंश तु किसका,
स्वर्ग का राजा भिक्षुक जिसका,
तुम उसी कर्ण का दान हो क्या?
या फिर कर्ण से धनवान हो क्या?
बताते नहीं, अनजान हो क्या?
जो हर लेता पाप तमस को,
तुमही वो गंगास्नान हो क्या?
प्रज्वल आभा देवो से हो,
मीरा के तुम गान हो क्या?
क्या त्रिलोक स्वामी का कृष्ण वेश हो?,
विष्णु की मेरी तृष्णा शेष जो ।।
जिसने यमुना को भी करा पवित्र,
तुम ही वो परवान हो क्या?
बोलो मोहन,
यशोदा के तुम श्याम हो क्या?
या सेतु के वो स्वामी हो तुम?
या जरा जन्म के ज्ञानी हो तुम?
एक बार जो थे मेरे वनों में खोए,
आसन त्याग मेरी गोद में थे सोए।
कौशल्या की संतान हो क्या?
तुम ही मेरे राम हो क्या?
था बैर मेरा जिसके रथ से,
आया गया जो विभाओ के पथ से।
शल्य के रथ पर वो राधेय सवार,
पीछे, सो कौरव कुमार,
उनमें से किसी के प्राण हो क्या?
द्रण ध्रुव पर मेघा काले,
तुम, तारो जैसे नैनो वाले,
गंगाजल मे वज़ू करोगे,
तुम, मुसलमान हो क्या?
स्वर्ण के मेरे मन दर्पण में,
संतो की कुटी, तपोवन में,
जो वास करती प्रेम भवन में,
मेदिनी की मुस्कान हो क्या?
ज्वलंत रवि को शीतल कर दे,
सागर को भी निर्मल करदे,
महीनों में रमज़ान हो क्या?
मानू तेरे राग सुहाने,
ऐसा भी करदिया मगर क्या,
हैं तीनों तेरे लोक दीवाने,
पूछूं तो बताओगे मगर क्या?
जो ईश्वर को भी पुत्र सा पाले,
हैं प्रभु को गोदी में लिटालें,
तुम ही वो गुणवान हो क्या?
अरे, तुम ही इंसान हो क्या?
तुम ही इंसान हो क्या?


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