मैं भी माँ सी हो गई – Delhi Poetry Slam

मैं भी माँ सी हो गई

By Mayura Kashikar

अपनी सोच में गुम रहने वाली
अब सब की फिक्र करने लगी
सुबह उठकर सारे काम करना
दूध कपड़ो का हिसाब रखने लगी 
मैं माँ सी हो गई

स्कूल और त्योहार पर
जल्दी उठने का राग आलापना
झट से बैग उठा कर बस में चलो 
वक्त की कदर करो
मैं भी यही बुदबुदाने लगी
मैं  माँ सी हो गई

मेहमानों से रौनक
बातें उनकी संगीत लगे
छोटे बड़े त्योहार पर दिया जला 
प्रसाद की थाली और चौखट सजाने लगी
 मैं माँ सी हो गई

नाश्ता, खाना और टिफिन की नौटंकी 
कुछ नया कुछ स्पेशल आज़माना 
पसंद और नखरे अब  विशेषता लगे
रोटियां भी सारी गोल बनाने लगी 
मैं माँ सी हो गई

बालों में सफेदी पैर में दर्द रहे
शहर की गर्मी से हो जाऊं हैरान
फिर भी कदम घर पर ना रुके
रजाई स्वेटर को धूप सिकाने  लगी 
मैं  माँ सी हो गई

लेखनी में  विचारों की ऊंचाई
बनाए संबंधो में रखे गहराई
हर उम्र के दोस्तों संग ठहाके
जहां रहे इत्र बन दुनिया महकाए
क्या मैं ऐसी हो पाई?

सारे संवाद सुने सुनाए
जो सुने थे वही मैं भी दोहराने लगी
बहुत लोग  कहते है माँ पर गई है
अब तो बच्चे भी कहने लगे 
'आप आजी (नानी) सी लगने लगी'
 मैं माँ सी हो गई?
हां .....मैं माँ सी हो गई


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