By Maya Rani Majhi

अकेला हूँ, पर कमजोर नहीं।
नींव से जुड़ा हूँ,
अपनी ज़मीन से जुड़ा हूँ।
गुस्ताख़ी न करना,
कोई इल्ज़ाम न देना।
हीरे सा पाक हूँ,
सोने सा खरा हूँ।
शीत को झेला है,
वर्षा से खेला है।
हवा के झोंकों से,
थपेड़ों से…
खेला है।
गुस्ताख़ी न करना,
कोई इल्ज़ाम न देना।
चाँद सा बेदाग़ नहीं,
पर सूरज सा साफ़ हूँ।
सूरज की तपिश, जो कोयला भी पिघला दे,
उस तपिश ने मुझमें
सुनहरा निखार लाया है।
चुराया नहीं है,
उधार नहीं लिया है।
अपने वजूद का, सारा श्रेय मैं लेता हूँ।
अकेला हूँ, कमजोर नहीं।
अपनी नींव से जुड़ा हूँ,
अपनी ज़मीन से जुड़ा हूँ।
टहनियों के बस दो पत्ते,
और पीली चार पंखुड़ी।
इस बड़े बागीचे में खड़ा,
बेचारा सा लगता हूँ।
भीड़ में होता तो खो जाता,
यही सोच सीना तान खड़ा हूँ।
गुस्ताख़ी न करना,
कोई इल्ज़ाम न देना।
गुरूर नहीं है, मगरूर नहीं हूँ।
अपनी जड़ों पर फ़ख़्र है,
सिर उठाकर खड़ा हूँ।
अकेला हूँ, कमजोर नहीं।
अकेला हूँ, कमजोर नहीं हूँ।
Very beautifully written 😍😍
Very beautifully written ❤️
Wow,very beautiful poem🙏💞
Very heartfelt love it aunty! ❤️
So beautiful aunty❤️
Khub Sundor Kabita 👏👏
Very nice 👏🏼👏🏼
It’s beautiful!⭐🩶
Such a beautiful piece, aunty! Love it❤️
Keep writing more & more
Loved this!! ❤️
Bahuta sundar kabita ese hi our achhe kabita hamko padhene ko milega umid rakhti hnu go ahead to make sure that you are the best 👌 👍 😍 🥰
Very thought provoking poem
Amazing poetry
Very nice 🙌👏
Bahut badhiya lekhan k liye badhai ho dear 🫰👏👏
Waarre wahh.
Independent Ladies Jindabad.