की तुम पूछते हमसे – Delhi Poetry Slam

की तुम पूछते हमसे

By Maurya Shejav

की तुम पूछते हमसे, फिर भी हम तुम्हें बता न पाते।
ये दूरियाँ और दायरें ही थे कुछ ऐसे, की तुम्हें कुछ बयान न कर पाते॥

कैसे अपने तड़पते दिल को तुम्हारे सामने रखते?
कैसे तुमसे उस पर मरहम लगाने की कोई गुजारिश करते ? 
की तुम पूछते हमसे फिर भी हम तुम्हे ये बयान न कर पाते,
की ये दायरें ही थे कुछ ऐसे की चाह कर भी उन्हें कभी लांग न पाते॥

क्या ही कहते तुमसे, की प्यार हो गया है तुमसे? 
और क्यों ही कहते तुमसे कुछ ऐसा, जब तुम किसी और के साथ रिश्ते में थे॥
की तुम पूछते फिर एक बार हमसे,
और फिर भी हम तुमसे कुछ बयान न कर पाते ,
की किस तरह से जल रहे थे हर पल, हर दिन, हर रात।
की इन हालातों में भी सुन रहे थे ।
तुम्हें,
तुम्हारी आवाज़,
और 
तुम्हारी बातें॥

की तुम पूछते हमसे, फिर भी हम तुम्हें बता न पाते।
ये दूरियाँ और दायरें ही थे कुछ ऐसे, की चाह कर भी तुम्हें कुछ बयान न कर पाते॥


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