By Manya Choudhary
कई कहानियाँ सुनी है हमने, कहानियाँ वीर योद्धाओं की
राम के पौरुष का वर्णन जिसमे, शौर्य वीर पांडवो की लेकिन इन गाथाओं तले, एक आवाज़ दब सी जाती है जिसमें सीता की सिसक और द्रौपदी की रूदन सुनाई आती है।
हर बार दिखती है एक असहाय स्त्री, खिचे केष और चीर विहिन
देह पर पराये हाथ के निशान और लहू-लुहान हृदय क्षीण,
जिनमे बयान उनकी कहानी, मानो सदियों की दासतान
कह रही जन्मों से, कि सह रही वह ये अपमान।
पहले रावण, फिर कौरव और अब इस युग के दरिंदे ,
हर बार दाव लगाते, स्त्री की किस्मत और तकदीरें ।
क्या समाज के ये निर्लज प्राणी लाज तुम्हारी बचाएँगे, मौका परस्ती है खून में जिनके , वह गीदड़ बन नोच खाएँगे।
वर्तमान में कहते हैं कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ ।
और जब बेटी को बहुत पढ़ाया, समाज सेवा का भाव जगाया,
बन चिकितस्क करती है वह बेटी जब जनकल्याण
दानव का सा रूप लिए तुम छुपाए अपनी पहचान
क्षत-विक्षत किया तुमने उसी स्त्री का सम्मान?
हाय रे का पुरुष, देख कैसे टूटता तेरा अहंकार,
बन दुर्गा और काली यह स्त्री करेगी तेरा संहार।
सीता तू पोंछ ले आंसू, द्रौपदी तू बांध केष
सत्यार्थी रणभूमी में शंखनाद का न समय शेष,
भारतवर्ष की बेटियों का गौरव फिर लौटाना है
सदियों के अत्याचार का ऋण हे पापी तुझे चुकाना है।आएंगे आर्यवर्ती वीर और न्याय संग होगा सार्थी,
फिर ललकारेगा का निज पौरुष जब पुकारेगी माँ भारती।