By Manoj Sharma
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एक लम्हे में जब रात बस अपने घर जाने को थी
सुबह की रौशनी अँधेरे को चीर के बस आने को थी
उस पल, मैं बस मैं था और एक लकड़ी की बेंच
बैठे बैठे आभास तो मुझे भी था की तुम ही आओगी
मेरी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल जाओगी
वो पल जब जब तुम्हे पहली बार उठाया अपनी बाहों में
लगा जैसे घुटने कमजोर पड़ रहे हों
जैसे बस बैठ जाऊं और महसूस करूँ तुम्हारे होने को
तुम्हारे छोटे से हाथ पैर और आँखों में खोने को
कभी जुजु माऊ, कभी पेट पर सुलाना
कभी कंधे पर उठाकर तुम्हे ऊँचाइयों को छुआना
कभी साथ मिलकर फिश टैंक की सफाई
तो कभी लोहे का घर और कभी कॉमिक्स बनाना
हाथ पकड़ कर जब तुमने पहली बार चलना सीखा
जरा सा तुम डगमगाती
मेरे हृदय की धड़कने उस पल में जैसे रुक सी जाती
दौड़ कर संभाल लेता था तुम्हे जैसे एक सहजवृत्ति अंदर समा जाती
देखते देखते आज तुम बड़ी हो रही हो
समझदार हो, मेहनती हो, अपने पैरों पर खड़ी हो रही हो
मैं आज भी जैसे यंत्रचालित सा तुम्हे दिन में जाने कितनी बार देखता हूँ
हर बार सोचता हूँ की जैसे तुम्हारी शक्ल याद हो गई
अगले ही पल लगता है जैसे वो याद फिर खो गई
याद का खोना तो सिर्फ एक बहाना है
सच तो ये है की बस तुम्हे हमेशा देखते जाना है
ये कैसा प्रेम है जो परिभाषित हो नहीं सकता
चाहे साँसें सो जाएँ पर ये खो नहीं सकता
एक दिन चली जाओगी तुम अपने आशियाने
होंठ छोड़ जाओगी पर मुस्कराहट ले जाओगी
दिल छोड़ जाओगी पर धड़कनें ले जाओगी
शरीर तो होगा यहीं सबके साथ, पर आत्मा ले जाओगी
मेरी बेटी, तुम मुझे अनंत से भी ज्यादा याद आओगी।
Heart touching!
बहुत भावुक कविता