By Manjula Salvi
क्या होते हैं पापा?
क्या कभी रोते हैं पापा?
इतना प्यार, इतनी खुशियाँ,
कैसे हर बार झोली में भर देते हैं पापा।
सोचा न था कभी बिना आपके भी जीना होगा,
अब तो हर बात, हर अहसास लिखकर कहना होगा।
इतनी क्या जल्दी थी जाने की .,
इतनी क्या जल्दी थी जाने की ?
रोता छोड़ गए हो जिनको,
क्या अब कोई राह है फिर से मिल पाने की?
कभी आपने अपना दर्द बताया नहीं,
तकलीफ़ में हूँ बहुत ये भी जताया नहीं ।
क्या होते हैं पापा ,आपके जाने के बाद जाना है ,
दुनिया को अब भी कहाँ पहचाना है ।
आपका ग़ुस्सा, आपका प्यार,
वो “जल्दी घर आ जा” वाला इंतज़ार।
“बोल क्या खाएगी?”
“अब वापस कब आएगी?”
एक आवाज़ अब भी कानो में आती है,
ना जाने क्यों फिर मेरी नींद खुल जाती हैं ।
क्या होते हैं पापा?
बेटी के विदा होने के बाद
चुपचाप रोते हैं पापा।
बहुत सी बातें कहनी थीं,
अभी कल ही मम्मी ने लाल चुनड़ पहनी थी,
आज वही लाल रंग फीका पड़ गया,
आप क्या गए ,जैसे घर ही उजड़ गया।
अब घर में सब ख़ाली -ख़ाली है ,
सब साथ होते हैं मगर कोई साथ नहीं है ।
खामोशियाँ बोलती हैं, पर वो पहले वाली बात नहीं है ।
हर हँसी के पीछे दर्द छिपा होता है,
भाई मेरा छूप -छूप कर बहुत रोता है ।
आपकी छाव में कोई गम पास ना था,
इतना मुश्किल है आगे का सफ़र ये एहसास ना था ।
क्या होते हैं पापा?
ये आपको बताना था।
आपसे कितना प्यार है ,
ये भी तो समझाना था।
इंतज़ार तो करते आप मेरा,
आपसे किया वादा और बेटी का फ़र्ज़ भी निभाना था ।
अपनी छाँव में कोई ग़म पास न आने देते,
“मैं हूँ ना”, कहकर सब दर्द मिटा देते —
यही तो होते हैं पापा, आज सब को बता देते हैं ।
अब तो बस आपकी यादें बाक़ी है ।