By Manisha Ghoshal
सपना!
हाँ, यही तो नाम है उसका |
देखा था मात-पिता ने उसके, एक सपना
सोचा था, सपना हमारा पूरा करेगी,
ये हमारी प्यारी सपना |
छोटी सी थी उनकी दुनिया,
भविष्य थी केवल दुलारी मुनिया |
खुश थे वे अपनी जिंदगी से,
नहीं मांगा कभी कुछ खुदा से |
बेचारी सपना !
क्या कसूर था उस नन्ही सी जान का?
जो आततायियों ने अनाथ किया|
क्या बिगाड़ा था उस निर्दोष ने किसी का?
जो यूँ उसे बर्बाद किया |
खड़ी रहती है वह सारा दिन,टुकुर-टुकुर ताकती,
हैरान है कि क्यों नहीं माँ-बाप को कहीं पाती?
सोते से जाग उठती है वह, देख यह भयावह सपना,
नजर आता है उसे केवल, जलता हुआ घर अपना |
ऐ खुदा, ऐ परवरदिगार बता-
शून्य में ताकती इन मासूम आंखों को,
कौन बतलायेगा कि अब नहीं है उसका कोई अपना ?
कौन दिखलायेगा उसे, भविष्य का नवीन सपना ?
कौन समझायेगा, कि क्यों है उसका नाम " सपना "?