मैं स्त्री हूं – Delhi Poetry Slam

मैं स्त्री हूं

By Mamta Paliwal

मैं स्त्री हूं

नवरात्रि की आस्था, दिवाली की चमक
होली की खुशियाँ और आंगन की रौनक हूं |

घर की रसोई में पके पकवानों की खुशबू और
बगिया में सजे फूलों की चहक हूं |

दुनिया की आधी हिस्सेदारी
और जीवन का सृजन हूं
मैं स्त्री हूं |

कभी पुरानी यादों से हिम्मत जुटाती
कभी बच्चों की आँखों में भविष्य के सपने सजाती
भाई की कलाई पर सजी राखी हूं मैं |

परिवार का मान
एक बेटी और एक पत्नी हूं मैं
नदिया सी चंचल, चपल हूं मैं |

मैं शक्ति स्वरूपा और ममता की छवि हूं
अपने वर्चस्व के लिए कई बार संघर्ष करती
परिवार को जोड़े रखने वाली कड़ी हूं मैं
मैं स्त्री हूं |

प्रतिदिन सुबह खुद को तैयार करती
नई दिनचर्या की ऊर्जा हूं मैं
किसी की छोटी सी तारीफ़ से नया उत्साह पाती
चमकते चेहरे की खुशी हूं मैं |

कुछ समझ और कुछ सहयोग
की आशा करती
बहुत सी परेशानियों को नज़रअंदाज करती
जीवन की अभिलाषा हूं मैं |

कभी सरल कभी जटिल लगती
भावनाओं का बहाव हूं
मैं स्त्री हूं |


Leave a comment