By Mamta Mittal
बहुत समझ रखते थे हमारे पूर्वज
बहुत ही ज्ञानवान थे।
वर्तमान के संग भविष्य की भी
रखते पहचान थे।
कलयुग स्वार्थ युग होगा
उनको यह एहसास हुआ
तभी तो तीज त्यौहार बनाकर
रिश्तो को आधार दिया।
उस जमाने में बिना मतलब भी
भाई-भाई से मिलते थे।
बहन भाई मिलकर सुख-दुख
सांझा करते थे।
कोई स्वार्थ नहीं कोई अकड़ नहीं
बस अपनापन ही था।
बोलने के लिए किसी दूसरे के पहले
टोकने का इंतजार नहीं था।
अपनों के तो क्या परायो के भी
दर्द को समझते थे।
दूसरों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए ही
बर्तनों पर नाम खुदते थे।
बहुत एहसान किया उन्होंने हम पर
तीज त्यौहार की रस्में बनाकर।
भात और रक्षाबंधन भाई दूज का
उपहार बनाकर।
पता था उनको की फिर बिन मतलब
भाई बहन के घर नहीं जाएगा।
भात नहीं न्यू देगी बहन तो ससुराल में
भाई का मान नहीं बढ़ पाएगा।
रक्षाबंधन ना होता तो कौन
जाता बहन के घर।
फोन पर ही बतिया कर पूरा हो
जाता अपना फर्ज।
यह तीज त्यौहार है तो
एक दूजे की अहमियत है।
सोचो अगर यह ना हो तो आज
किसको किसकी जरूरत है।
नीरस हो जाती जिंदगी अगर
बेटियां मायके ना आती।
सुनी सी लगती शादियां अगर
पटरे पर ना आते- भाती।
एक दूजे के साथ का एहसास
करवाते हैं त्योहार।
एक दूजे बीना कितने सुने है हम
बताते हैं त्योहार।