Main Mard Hoon – Delhi Poetry Slam

Main Mard Hoon

By Prashakha Gupta

मैं मर्द हूँ...
जो किसी के सामने फूट-फूट कर रो दूँ तो अपनी मर्दानगी पर कलंक मैं पाता हूँ,
कभी पिता, तो कभी भाई, तो कभी बेटा या दामाद बन... चुप्पी साधे बहुत कुछ मैं कर जाता हूँ,
हाँ, मैं मर्द हूँ...
दिलों में बेचैनियाँ लिए मैं चलता हूँ... कभी पूरे परिवार के लिए राम बन निकलता हूँ,
अपने कर्मों से मैं हर नामर्द की गलतियाँ सुधारने को गोविंद बनता हूँ,
फिर भी बारम्बार — "तुम सारे मर्द न एक जैसे होते हो" का संवाद मैं सुनता हूँ,
हाँ, मैं मर्द हूँ...
बार-बार उसे अनसुना कर और बेहतर मैं होना चुनता हूँ,
सारे नामर्दों के कुकर्मों का बोझ कंधे पर लिए मैं चलता हूँ,
मेरी माँग में कोई सिंदूर नहीं... गले में कोई मंगलसूत्र नहीं... पर मन में ज़ंजीरों की शहनाई पर अकेले मैं थिरकता हूँ,
उसी ध्वनि पर मैं अक्सर... दुविधा की दौड़ में प्रथम आया करता हूँ,
बसों, ट्रेन, मेट्रो इत्यादि में... सीट छोड़ अक्सर मन में ताव लिए मैं खड़ा हुआ करता हूँ,
चाहे कितने ही दर्द में हूँ... उस पीड़ा को बयान करने से इनकार मैं करता हूँ।

मैं मर्द हूँ...
घर की हर लड़ाई में सीता मैं बनता हूँ... बात-बात पर बीवी और माँ के बीच अग्नि में मैं जलता हूँ,
सबके सामने पांडव... मन में क्रोध का तांडव मैं करता हूँ,
अक्सर मैं अपनी ज़ुबान की चाबी दूर फेंक दिया करता हूँ,
अपनी असली काया को आईने में खोजा करता हूँ,
सबकी हाँ में हाँ मिलाकर रोज़... खुद ही खुद से हारा करता हूँ,
हाँ, मैं मर्द हूँ...
लफ़्ज़ों ने मेरे मन की बाँह पकड़ रखी है... मेरे ही कलेजे ने मेरी आह पकड़ रखी है,
कभी इकलौता होने के कारण समाज में अस्त्र मैं बनता हूँ,
हर दिन, हर पल, ज़िम्मेदारियों का वस्त्र मैं पहनता हूँ,
सिर्फ तन्हाइयों में मैं अपने अक्स को नंगा करता हूँ,
सिर्फ दीवारों संग आँखों को गंगा करता हूँ,
अक्सर मैं शिव बनकर आसपास का विष पिया करता हूँ।

हाँ, मैं मर्द हूँ...
जिससे सच्ची मोहब्बत कर लूँ
दिल का ताज दे... दिल को महल मैं करता हूँ,
उसकी नादानियों से अपनी दुनिया में चहल-पहल करता हूँ,
जीवन के चक्र में उसे सुदर्शन करता हूँ।

हाँ, मैं मर्द हूँ...
रेत-सा मैं अक्सर... अस्तित्व की मुट्ठी से निकलता हूँ,
कभी सख़्त लौंडे का टैग लिए, कभी छिछोरेपन का स्वैग लिए मैं चलता हूँ,
हरकतों से अपनी कभी तोता, तो कभी टाइगर कहलाता हूँ,
हाँ, मैं मर्द हूँ... समाज वर्गीय मर्दानगी न दिखाऊँ तो मीठा मैं कहलाता हूँ,
क्रिकेट में नहीं... कभी भावनात्मक बनूँ तो छक्का माना जाता हूँ।

हाँ, मैं आजकल का मर्द हूँ...
कई नामों से पुकारा जाता हूँ,
ख़यालों की ख़ाक से निकल कर वर्चुअल रियलिटी में मैं पलता हूँ,
कभी PUBG में राइफल लिए, तो कभी Temple Run में demons छोड़... नकली बंदरों से भागा करता हूँ,
असलियत में नहीं... सिर्फ़ वर्चुअल रियलिटी में खुशियों की पोटलियाँ लिए चलता हूँ।

हाँ, मैं आजकल का मर्द हूँ...
हाँ, मैं आजकल का मर्द हूँ।


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