Maa – Delhi Poetry Slam

Maa

By Richa Dhaliwal

सुनते ही समझ आ जाये 
ऐसी है माँ......

रखती है वो खयाल सबका
अपना जाती है भूल
देकर सबको प्यार
खाली सी रह जाती है , माँ !

गोदी उठाए दौड़ पड़े
रिमझिम को चीरती वो
खुद नंगे पैर है नर्म जिसके
कठोर को भी मात दे वो है, माँ !
सुनते ही समझ आ जाये
ऐसी है माँ......

आँखों में हर पल दबाये
मुझको जगाती है वो
खुद ही सब कुछ है करती
मुझको कितना सिखाती है , माँ !
सुनते ही समझ आ जाये
ऐसी है माँ......

चेहरे पर नूर लिए ऐसा
रूह तक झांक लेती है वो
जो तुमने ना कहा हो
वो भी समझ जाती है , माँ !
सुनते ही समझ आ जाये
ऐसी है माँ......


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