Maa – Delhi Poetry Slam

Maa

By Swati Yadav

सूरज की किरणें मेरे आँगन मेें
कभी सराबोर नहीं होती
अगर मेरी माँ मेरे चारों ओर नहीं होती ll

माँ का आँचल पकड़ें कभी छत,कभी आँगन की परिक्रमा करती मैं, 
सुबह से शाम तक माँ के इर्द-गिर्द फिरकी सा घूमा करती मैं l
मेरे जीवन मे कोई साँझ , कोई भोर नहीं होती l
अगर मेरी माँ मेरे चारों ओर नहीं होती ll

समाज की सरहदें हमपे बहुत तंग है,
रीति रिवाजों की बेड़ियों में हमारी हजारो कहानियाँ बंद है,
हमारी अल्हड हँसी, और समाज मे न जाने कैसी जंग हैll
आकाश में उड़ने की मंशा हमारे मन में नहीं होती,
अगर हमारी माँ हमारे संग में नहीं होती ll

बंद आँखों में लाखों सपनें बुन रखे है मैंने ,
दीवारों की दरारों से आती धूप, मेरे मन को भाती है ,
बाहर आकाश मे उड़ती चिड़िया बहोत मुझे लुभाती है,
माँ कहती है, "एक दिन ऐसा आकाश मुझे देगी ,
दुनिया भर का सारा प्रकाश मुझे देगी" ,
मेरे सपनों की इतनी ऊँची डोर नहीं होती,
अगर मेरी माँ मेरे चारों ओर नहीं होती ll

मेरे मन की आकाशगंगा में माँ मेरी सूरज सी बस्ती है ,
मैं धूल का बादल ,अस्तित्वहीन मेरी हस्ती है l
निराशाओं के अँधेरों में, माँ सम्भावनाओं के रंग भर्ती है l
बड़ी भोली है मेरी माँ ,जीवन के गणित बड़ी सरलता से हल करती है l
उम्मीद और हौसलों की बौछारें इस मन के मरुस्थल पर हर छोर नहीं होती ,
अगर मेरी माँ मेरे चारों ओर नहीं होती ll

 


2 comments

  • Amazing
    maa is superhero😍

    Kuldeep G Chikaane
  • Excellent piece of work, very touching and beautiful poem, proud of you dear ❣️

    Ruksana

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