घोंसले – Delhi Poetry Slam

घोंसले

By Dr. Lalit Ranjan Pathak

ना जाने आंखों में बार बार कुछ नमी-सी क्यूँ आ रही है ?

उन चहचहाटों में आज कुछ कमी-सी क्यूँ आ रही है ?


हम पहले जिन्हें कोख में, फिर ओट में लिए फिरते थे |

उनके मासूम उन इशारों पर, सदा निहाल हुआ करते थे |

वो इठलाते-मुस्कुराते, लड़ते- लड़ाते, रोते-खिलखिलाते,

जाने कब हमारे कद-काठी सरीखे बड़े हो गए हैं ?

अब मशगूल वो दर-बदर दानों की तलाश में हैं,

नए आशियां बनाने को, अपने घरों को छोड़ गए हैं |

नन्हें चूज़े जब अपने नीड़ों को छोड़ उड़ जाते हैं,

ख़ाली उन घोंसलों में, यादों की भीड़ छोड़ जाते हैं |

कभी-कभी दूर से आती उन कूकों का ही तो, अब सहारा है,

वरना यहाँ तो शोर, अब सन्नाटों का ही रचा-बसा है |


इसी लिए आंखों में बार बार कुछ नमी-सी आ रही है |

उन चहचहाटों में आज कुछ कमी-सी आ रही है |


16 comments

  • बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी जीवन की सच्चाई से जुड़ी हुई और वृद्धावस्था में अकेले पड़ गए माता पिता के भावनाओं को अभिव्यक्त करती आपकी ये कविता
    लगता है अपने ही भावों को अभिव्यक्त कर रही है।मैं स्वयं तो न ही कवि हूं न ही
    साहित्य का ज्ञान है मुझे लेकिन विज्ञान का विद्यार्थी होने के बाद भी कविता और साहित्य के प्रति मेरा झुकाव रहा है जो मुझे अपने पिता जी के कारण मुझमें आया है क्योंकि मेरे पिताजी हिंदी और संस्कृत के सिद्धहस्त कवि और लेखक थे। और उनकी रचनाएं शाकद्वीपीय ब्राह्मण बंधु पत्रिका में नियमित रूप से प्रकाशित होती थीं और आकाशवाणी रांची से उन्हें कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया जाता था। मैं स्वयं भी
    विद्यालय और महाविद्यालय में विद्यार्थी
    और शिक्षक रहने के दौरान विद्यालय और
    महाविद्यालय में प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं में कवितायें और लेख लिखता था। लेकिन मैं कभी अपने आपको कवि या लेखक नहीं समझता।
    पर एक सफल एवं उच्च पद पर कार्यरत चिकित्सक होने के बाद भी आप के एक सफल कवि होने पर मैं आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूं और आपके एक प्रसिद्ध कवि के रूप में जाने जाने की कामना करता हूं।
    रविनंदन नाथ पाठक।

    रविनंदन नाथ पाठक अवकाश प्राप्त विभागाध्यक्ष रसायनशास्त्र विभाग और अध्यक्ष विज्ञान और अभियांत्रिकी संकाय कोल्हान विश्वविद्यालय चाईबासा झारखंड।
  • Very good poetry.I was unaware of this dimension of ur personality. Definitely very realistic n touching

    PARMESHWAR kr PANDEY
  • Beautiful poetry, so touching.

    Ravindra Verma
  • इस कविता में भावनाओं की गहराई सहज शब्दों में उतरती है। पढ़ी नहीं जाती, महसूस की जाती है।

    कुल मिलाकर, यह कविता साधारण अनुभवों को असाधारण संवेदनशीलता से अभिव्यक्त करती है।

    Avanish
  • Beautiful poem❤️

    Shrishti Priya
  • Expression of deepest emotions of parents in such an elegant way. Congratulations Lalit.

    Arun Dhanuka
  • आपकी ये खुबसूरत कविता हमें अपने घर के खालीपन के साथ साथ अपने मां-बाप के भी ईन तकलीफ़ों का अहसास करवाती हैं.
    बहुत मार्मिक पंक्तियां हैं.

    Reena
  • बहुत सुन्दर प्रस्तुति ललित भाई।

    Ramesh Kumar Mishra
  • बहुत सुन्दर प्रस्तुति ललित भाई।

    Ramesh Kumar Mishra
  • Very well written Lalit. Great depth and nuance of the rhythm of life, so true with our own kids leaving home and the quietness as we get older.

    Ratna Rao
  • Beautiful poem❤️

    Bhavya
  • कविता की यही खासियत होनी चाहिए—सीधे न कह कर भी सबकुछ सीधा कह जाती है और सोचने का काम दिमाग के जगह दिल से कराती है।

    बहुत ही अच्छा…

    Vivek Dutta Mishra
  • Today’s reality facing almost every high educated child’s parent. This is dedicated to them.

    Dr S D Agrawal
  • The empty nest syndrome ……. faced by all parents in today’s “Modern” age in which the family reduces even as children grow and (necessarily?) move out and away.

    Ravi Saxena
  • Beautiful expression of life and its truths illustrated with simplicity and honesty. Moves one to appreciate the small nuances and experiences of life. Kudos

    Sunil
  • Very good poetry,,, bilkul real life se ghatit kahani.
    Thanks a lot Lalit Bhai

    Dr Shubh Narayan Sharma

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