इंकलाब – Delhi Poetry Slam

इंकलाब

By Laj Sampla

ना आग़ाज़ जानती है, ना अंजाम जानती है,
यह कलम तो बस इंक़लाब जानती है।
लगाए जो दुनिया ने, ना वो इल्ज़ाम जानती है,
यह तो अल्फ़ाज़ों से बने अपने कलाम जानती है।

महफ़िल ने तय किया जो, ना वह दम जानती है,
छू जाए रूहों को.. सिर्फ़ वह पैग़ाम जानती है।
रफ़्तार इसकी रोके जो..ना वो लगाम जानती है,
सच की दुनिया में है जो.. उसका वो मुक़ाम जानती है।

यह कलम तो बस इंक़लाब जानती है।


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