By Kumar Ranjan
करूँ कहाँ से शुरू मैं प्रियतमा प्रथम भेंट की बातें |
मिलन की बेला , हमारा मिलना या मिलन पूर्व की रातें ||
सजी सेज पर तुम्हारा वो पग और पायल की झंकार |
वो तुम्हारी झुकी सी पलकें और दुल्हन का श्रृंगार ||
देख तुम्हारी जुल्फें श्यामा जैसे बदरा के साये हों |
सौंदर्य सजाने को तुम्हारा स्वयं कामदेव आये हों ||
लहराया जब आंचल तेरा, फीकी लगी चांदनी रातें |
देख तुझे बदला कुछ मौसम, जैसे बिन बादल बरसातें ||
करूँ कहाँ से शुरू मैं प्रियतमा प्रथम भेंट की बातें |
मिलन की बेला , हमारा मिलना या मिलन पूर्व की रातें ||
नयन तुम्हारे गहरे सागर, जो ओढ़े चादर कजरारे |
केश तुम्हारे ऊन्नमत्त परिंदे, जैसे दो ह्रदय हमारे ||
मेहंदी का रंग चड्ढा मुझ पे यूं जैसे मीरा पर कृष्णा का |
तुझे देख प्यास बुझी कुछ मेरी जैसे अंत हो मृग की तृष्णा का ||
तुम्हीं हो राधा , तुम ही रुक्मिनी ,तुम्हीं मेरी सत्या हो |
और तुम बिन जीवन कुछ यूँ मेरा , जैसे कि मिथ्या हो ||
समय रुका उस वक्त वहीं पर तेरे हाथों को पकड़ाते |
काश तेरी तारीफें ये ही उस दिन भी कर पाते ||
करूँ कहाँ से शुरू मैं प्रियतमा प्रथम भेंट की बातें |
मिलन की बेला , हमारा मिलना या मिलन पूर्व की रातें ||
बात बढ़ी कुछ आगे यूं, तुमने वरमाला पहनाई |
महफिल भी गूंजी कुछ ऐसे जैसे मन में शहनाई ||
लाल था जोड़ा, होंठ भी लाल थे, चेहरे पर लाली थी छायी |
सखियाँ तेरी, घेरे तुझको, मंडप में लेकर थी आयी ||
मिलकर तुमको विजित हुआ मैं और हुआ पराजित भी|
पाना तुमको, खोना दिल को, इसमें ही था मेरा हित भी ||
पाने की छुधा थी एक दूजे को, कैसे काबू कर पाते |
ये भी मुमकिन तब ही था जब सूत्र प्रणय में बंध जाते ||
करूँ कहाँ से शुरू मैं प्रियतमा प्रथम भेंट की बातें |
मिलन की बेला , हमारा मिलना या मिलन पूर्व की रातें ||
