Kuldeepak – Delhi Poetry Slam

Kuldeepak

By Shreya Agrawal


कुलदीपक

रात के तीन बजे आइ यह खबर ,
“मुबारक हो मुबारक हो” बेटी हुई है आपके घर,
मन मेरा घबराया ,सोचा हेय भगवान
यह बोज क्यू डाला मेरे कंधे पर |

साल गए बीत अब फिर हुई मन में हलचल ,
इस बार शूकर है आइ एक बेटे की खबर,
में दिल ही दिल मुसकाया ,
सोचा ,यह बनेगा मेरे बुढ़ापे का सहारा ,
यह है युवराज मेरा,
यह है युवराज मेरा |

तभी वही बेटी मुझसे पूछती,
“पापा क्या मेरे आने पर भी जश्न था मनाया ?”
“नहीं नहीं” कहा मैंने बस अफ़सोस कर दिन बिताया |

बीत गए बरस आज ,
फिर उस हस्पताल में ही लाया गया मुझे आज ,
कैन्सर कैन्सर कहते लोग आस पास ,
आगाया कैसा काल,
पैसों का मोल जीवन से जाता बढ़,
और कहता मेरा युवराज माफ़ करो पापा अब नहीं दे पाऊँगा में आपका साथ ,
जीने की आशा जब हो गयी खतम , गिरते इन बूढ़े आँखों से आँसू जब ,
पोंछकर उसस दुःख को कहती वही बेटी तब ,
“हिम्मत रखिए पापा में थामूँगी आपका हाथ इस मुश्किल के वक्त”,
यह देखकर आँखे मेरी गयी भर ,
जिसे मैंने माना बोज वही बनी मेरी कुलदीपक !


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