By Chhavi Kaushik
एक शख्स अंजना सा, कुछ-कुछ जाना-पहचाना सा,
निगाहें मिलाकर ख्वाब सजा जाता है ।
एक मोहब्बत रंगों सी, कुछ-कुछ इबादत सी,
तन्हाई में साथ निभा जाती है |
एक लम्हा अधूरा सा, कुछ-कुछ पूरा सा,
कसक बनकर याद छोड़ जाता है ।
एक अफसाना पैगाम सा, कुछ-कुछ मुकाम सा,
ख्वाब मुकम्मल कर जाता है |
एक वादा यकीन सा, कुछ-कुछ नमकीन सा,
फुर्सत में अपना ईमान जताता है |
एक सफर सिलसिले सा, कुछ-कुछ फासले सा,
मरहम बनकर हौंसला दे जाता है |
एक लाज पिंजरे सी, कुछ-कुछ परदे सी,
अनकही रहकर सता जाती है |
एक मुस्कान खुशबू सी ,कुछ-कुछ ख्वाहिश सी ,
मासूम दिल को पंख लगा जाती है |
एक पुकार ख़ामोशी सी, कुछ-कुछ नाद सी,
सालों बाद अपना असर छोड़ जाती है |