By Kshitij Kawatra
गया मै मंदिर गिरजा घर
गया ख़ुदा के सब ही दर
रिवाज सब के अपने थे
थे हाथ-बाँधे ख़म सब सर
सवाल ना कर ना जायज़
फ़लक की बातें काटे पर
थे राज़ जन्नत-दोज़ख़ के
बताओ कैसे चलता घर
न जानता था सच कोई
डराने को सब ही बर-सर
अमान की बस बातें थी
दिखा जहां में बद-मंज़र
सभी बने नासेह ताहम
न होना चाहा ख़ुद बेहतर
सवाल ख़ुद से लेकिन कर
दुआएँ की भटके दर दर
तिरे जो दिल की जाने सब
न माँगे फिर भी दे हद-भर
ज़मीन, गर्दूं सब मज़हर
वुजूद जो मौज-ए-मुज़्तर
तू इस समंदर का क़तरा
इसी से मिल हो जा सागर
है मुश्किलों के हल सब ही
मिले सराहत के अक्षर
निडर सफ़र में आगे बढ़
यक़ीन से उठ जाए सर